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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

FRBM act 2003, FRBM , राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन एक्ट 2003

राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम  (FRBM) 2003   परिचय : वैश्वीकरण के बाद सरकार के कर्ज़ में लगातार वृद्धि हो रही थी अर्थात् राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा था तथा राजकोषीय अनुशासन का पूर्ण प्रभाव देखा जा रहा था। कोई भी सरकार इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रही थी और बढ़ते राजकोषीय घाटे के परिणाम भी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल पड़ रहे थे। ऐसे में राजकोषीय अनुशासन स्थापित करने, राजकोषीय घाटे तथा राजस्व घाटे को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वर्ष 2003 में FRBM एक्ट लाया गया। इस एक्ट के माध्यम से सरकार के लिए राजकोषीय घाटे तथा राजस्व घाटे से संबंधित कुछ लक्ष्य रखे गए, जिन्हें सरकार को पूरे करने अनिवार्य थे। FRBM एक्ट ने निम्नलिखित लक्ष्य रखे - 1. राजकोषीय अनुशासन को स्थापित करना सरकार के कुल दायित्व में 1 वर्ष में 9% से ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हो। PSU एवं राज्य सरकारों के लोन पर केंद्र द्वारा जो गारंटी ली जाती है वह GDP के 0.5 प्रतिशत राशि से अधिक न हो 2. राजस्व घाटा : राजस्व घाटे को 0.5% प्रतिवर्ष कम करना तथा 2007-08 तक अपनी GDP का 0% करना ...

उच्च शक्तिशाली मुद्रा (मौद्रिक आधार अथवा आरक्षित मुद्रा) High Powered Money, Monetary Base, Reserve Money

High Powered Money        (Monetary Base/Reserve Money : M0) उच्च शक्तिशाली मुद्रा (मौद्रिक आधार / रिजर्व मुद्रा) • The High Powered Money refers to the total liability of the Monetary authority of the country (in India it is the Liability of RBI)     देश के मौद्रिक प्राधिकरण की संपूर्ण देयता (भारत में RBI & सरकार की देयता) • सरल शब्दों में रिजर्व बैंक एवं सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में जो मुद्रा निर्गमित की जाती है। Currency issued by RBI and Government of India in economy. It consists of (Components) :  इसमें शामिल हैं (तत्व) 1. Currency held by the public : Notes & Coin (C)      जनता के पास करेंसी (नोट एवं सिक्के) 2. Cash reserve with the Banks :  (R)      बैंकों के पास नकद रिजर्व                                        H = C + R           ...

बाजार का अर्थ एवं बाजार का वर्गीकरण , पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की प्रमुख विशेषताएं

पूर्ण प्रतियोगी बाजार : Perfect Competition बाजार : Market बाजार का आशय उस संपूर्ण क्षेत्र से है जहां क्रेता एवं विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धात्मक संबंध पाए जाते हैं । बाजार का वर्गीकरण : Classification क्षेत्र के आधार पर  • स्थानीय बाजार : Local जिस बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं का विस्तार गांव/ शहर / उपनगर तक सीमित । उदाहरण : शीघ्रनाशी वस्तुओं फल, सब्जी, मांस, मछली आदि का बाजार  • प्रादेशिक (क्षेत्रीय) बाजार : Regional जब किसी वस्तु का बाजार संपूर्ण प्रदेश अथवा क्षेत्र तक सीमित होता है । उदाहरण : राजस्थान की चुनरी लहंगा, मारवाड़ की पगड़ी आदि का बाजार  • राष्ट्रीय बाजार : National जब किसी वस्तु विशेष के क्रेता एवं विक्रेताओं का विस्तार पूरे देश में होता है । उदाहरण : विभिन्न खाद्य पदार्थों का बाजार, कपड़ा एवं आभूषण का बाजार  • अंतर्राष्ट्रीय बाजार : International  क्रेता एवं विक्रेताओं का फैलाव विभिन्न देशों में । उदाहरण : जेम्स एवं ज्वेलरी, कच्चा तेल, इंजीनियरिंग मशीन शॉपिंग मॉल : एक ही छत के नीचे देशी एवं विदेशी कंपनियों द्वारा वस्तुओं का क्रय विक्रय किया ज...

एकाधिकारी शक्ति का माप , एकाधिकारी शक्ति को मापने की विधियां : मांग की लोच विधि तथा प्रोफेसर लर्नर का माप

एकाधिकारी शक्ति से आशय उस स्व-निर्णय की मात्रा से हैं जो किसी उत्पादक या विक्रेता को कीमत एवं उत्पादन नीति का निर्धारण करने के संबंध में प्राप्त होती है । अर्थात एकाधिकारी शक्ति नियंत्रण कि वह मात्रा है जो कोई उत्पादक एवं विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत तथा उत्पादन पर प्राप्त करता है । एकाधिकारी शक्ति को मापने की विधियां : 1. मांग की लोच द्वारा :  • किसी व्यक्तिगत फर्म या विक्रेता की वस्तु का मांग वक्र पूर्णतया लोचदार होने पर विक्रेता का अपनी वस्तु की कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं होता है । बाजार में प्रचलित कीमत के आधार पर ही वह उत्पादन निर्धारित करता है। अतः पूर्ण प्रतियोगिता में एकाधिकारी शक्ति प्राप्त नहीं होती है। • यदि मांग वक्र पूर्णतया लोचदार से कम होता है अर्थात नीचे की ओर गिरता हुआ होता है तो अपूर्ण प्रतियोगिता की विभिन्न श्रेणियों में एकाधिकारी तत्व की कुछ मात्रा विद्यमान होती हैं जो विक्रेता के एकाधिकारी तत्व को बताती है। किसी वस्तु की मांग की लोच जितनी कम होगी एकाधिकारी नियंत्रण की मात्रा उतनी ही अधिक होगी और विलोमश: । • जब वस्तु का मांग वक्र पूर्णतया बेलोचदार होगा तो विक्रेत...

बाजार असफलता , अपूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार तथा बाजार असफलता, सार्वजनिक वस्तुएं एवं बाजार असफलता, आंतरिक एवं बाह्य मितव्ययता तथा बाजार असफलता

• पूर्ण प्रतियोगिता बाजार, परेटो अनुकूलतम अथवा आर्थिक कुशलता या अधिकतम सामाजिक कल्याण को सुनिश्चित करता है।  • इसके अनुसार साधनों का कोई भी पुनः आवंटन कुछ अन्य व्यक्तियों के कल्याण को कम किए बिना कुछ व्यक्तियों को बेहतर नहीं बना सकता है।  • कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिसमें बाजार व्यवस्था अधिकतम सामाजिक कल्याण की स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकती हैं। जिन परिस्थितियों के कारण स्वतंत्र बाजार अर्थव्यवस्था अधिकतम सामाजिक कल्याण को प्राप्त करने में असफल रहती हैं उसे बाजार असफलता कहा गया है।  बाजार असफलता के तीन प्रमुख कारण होते हैं:-    1. अपूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार  2. बाह्य मितव्ययिताएं एवं अमितव्ययिताएं  3. सार्वजनिक वस्तुएं 1.एकाधिकार या अपूर्ण प्रतियोगिता  सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार या एकाधिकार उत्पादन के साधनों का गलत आवंटन करता है और अधिकतम सामाजिक कल्याण की प्राप्ति में बाधा होता है । परेटो अनुकूलतम के लिए यह आवश्यक शर्त होती है कि किन्ही दो वस्तुओं के बीच रूपांतरण की सीमांत दर (MRT) प्रत्येक उपभोक्ता के लिए कि...

Psychological Law of Consumption (professor JM keynes)

PSYCHOLOGICAL LAW OF CONSUMPTION • J.M. Keynes • Book :  The General theory of Employment, interest and money ( 1936) • Also known as Fundamental Psychological law ASSUMPTIONS • Normal Conditions  • Consistency of psychological and institutional factor  no change in Population, Habits,  taste etc. • Capitalist economy based on laissez fair EXPLANATION • Based on the relationship between aggregate consumption and income. • LAW : The psychological law of consumption is such that when aggregate real income is increased , aggregate consumption is also increased but not by so much as income. • MPC is always Positive but less than one The law is Based on 3 interrelated propositions :- 1. When aggregate income increases consumption expenditure also increases but less proportionately. 2. Increment in the level of income is always divided into Consumption expenditure & Saving 3. An increase in income , leads to an increase in Consumption as well as Savings. Inco...

राजस्थान में स्त्रियों एवं पुरुषों के आभूषण से संबंधित बहुविकल्पीय प्रश्न

राजस्थान में स्त्रियों एवं पुरुषों के आभूषण से संबंधित बहुविकल्पीय प्रश्न 1. निम्न में से कौन सा आभूषण स्त्रियों एवं पुरुषों द्वारा सम्मिलित रूप से पहना जाता है  A. कंगन , चुटकी  B. नेकलेस, बुंदे  C. चैन , अंगूठी  D. कमरबंद , मंगलसूत्र 2. निम्न में से नाक में पहने जाने वाला आभूषण है  A. नथ B. कड़ा C. बिछिया  D. उपरोक्त सभी 3. तिलक शरीर के किस भाग पर धारण किया जाता है  A. नाक में  B. कान में C. गले में  D. ललाट पर 4. राजस्थान में स्त्रियों की सुहाग की निशानी का आभूषण है  A. शीशफूल  B. तिमाणियां  C. पूंछा  D. लाख का चूड़ा 5. राजस्थानी महिला मुख्य रूप से कौन सा परिधान पहनती हैं A. घेरदार घाघरा B. लुगड़ी एवं ओढनी  C. कांचली  D. उपरोक्त सभी 6. निम्न में से किस राज्य पोशाक को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली हैं  A. अचकन B. जोधपुरी कोट  C. मेवाड़ी पगड़ी D. अंगरखी 7. पूचिया आभूषण राजस्थानी महिलाओं द्वारा किस अंग पर धारण किया जाता है A. बाजू पर  B. कान पर C. कलाई पर D. नाक पर 8. राजस्थान में सुरलिया आभू...

15 वां वित्त आयोग , 15 वें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिश 15 th Finance Commission

15 वां वित्त आयोग (15th Finance Commission) • गठन : 22 नवंबर 2017 • अध्यक्ष : डॉ एन के सिंह (पूर्व संसद सदस्य एवं भारत सरकार के पूर्व सचिव) • सदस्य : Members 1. श्री अजय नारायण झा (वित्तीय क्षेत्र), पहले शक्तिकान्त दास थे लेकिन दिसंबर 2018 में उनके भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बनने के बाद श्री अजय नारायण झा इसके सदस्य बने हैं। 2. डॉ अशोक लाहिरी (अर्थशास्त्र विशेषज्ञ),  3. डॉ अनूप सिंह 4. प्रो. रमेश चंद्र (नीति आयोग के सदस्य) सचिव : अरविंद मेहता • कार्यकाल : 5 वर्ष  2020-25 (1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2026) • इस आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट 1 फरवरी 2020 को प्रस्तुत की है जिसमें वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए सिफारिश की है । फाइनल रिपोर्ट 30 अक्टूबर 2020 तक सौंपी जाने की संभावना है। अंतरिम रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें 1. केंद्र के करो में राज्यों का हिस्सा  • 42% से कम करके 2020-21 के लिए 41% करना।  • यह कमी नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख को केंद्र सरकार द्वारा धनराशि देने के लिए की गई हैं।  सुरक्षा तथा...

Finance Commission ( वित्त आयोग क्या है )

भारत में वित्त आयोग : Finance Commission • स्थापना : 22 नवंबर 1951 वित्त आयोग अधिनियम 1951 के अनुसार • गठन : भारत के राष्ट्रपति द्वारा • कार्यकाल : 5 वर्ष का (आवश्यकतानुसार कम ज्यादा) • यह एक संवैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना अनुच्छेद 280 के अंतर्गत की गई हैं • यह अर्ध न्यायिक एवं सलाहकार संस्था है • 1993 से सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग का गठन किया गया है। संरचना : Structure • एक अध्यक्ष  • चार सदस्य : 2 पूर्ण कालीन एवं 2 अंश कालीन • इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं तथा इनकी पुनर्नियुक्ति भी हो सकती हैं। • कार्यकाल का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। • अध्यक्ष एवं सदस्यों के चयन की योग्यता और चयन विधि का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है। कार्य : Functions वित्त आयोग निम्न मुद्दों पर अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति को देता है • केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के मध्य वित्तीय संबंधो (कर  प्राप्तियों) का वितरण किस प्रकार हो । राज्यों के हिस्से का आवंटन  • केंद्र सरकार को किन सिद्धांतों के आधार पर राज्यों...

12th NCERT Lesson 3 (उदारीकरण निजीकरण एवं वैश्वीकरण एक समीक्षा)

  Lesson 3   उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण एक मूल्यांकन   परिचय • वर्ष 1991 भारत विदेशी ऋण के भुगतान की स्थिति में नहीं था • विदेशी ऋण से संबंधित आर्थिक संकट - सरकार विदेशी ऋणों के पुनर्भुगतान करने में सक्षम नहीं थी, विदेशी मुद्रा रिजर्व (मुद्रा भंडार) एक स्तर पर गिरा दिया गया था जो कि 15 दिनों तक की आवश्यक आयात के लिए भी पर्याप्त नहीं था ।  • अनिवार्य वस्तुओं के लिए कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई थी इसी कारण सरकार ने कुछ नई नीतियों को अपनाया जिससे हमारे विकास की रणनीतियों की संपूर्ण दिशा में बदलाव आ गया पृष्ठभूमि : भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता भारत में आर्थिक सुधार क्यों प्रारंभ किए गए ? वित्तीय संकट का वास्तविक कारण  • 1980 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का अकुशल प्रबंधन • व्यय > आय = घाटा (सरकारी बैंकों, लोगों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से इसे वित्त के लिए उधार लेती है) • सामान्य प्रशासन के लिए करो एवं सार्वजनिक उद्यम आदि के माध्यम से फंड की व्यवस्था • हम कच्चे तेल जैसे सामान आयात करते हैं - हम डॉल...

बजट 2020 21 , यूनियन बजट 2020-21

बजट 2020-21 • घोषणा 1 फरवरी 2020 (वित्तमंत्री : निर्मला सीतारमण) • 160 मिनट का बजट भाषण (2 घंटा 40 मिनट) कृषि , सिंचाई एवं ग्रामीण विकास • कृषि क्षेत्र को प्रतिस्पर्धात्मक बनाकर किसानों की उन्नति सुनिश्चित करना • मत्स्य उत्पादन : 2022-23 तक बढ़ाकर 20 लाख टन करने का प्रस्ताव • कृषकों की आय : 2022 तक  दोगुनी करने का लक्ष्य • 16 सूत्री योजना : बागवानी, अनाज भंडारण, पशुपालन और नीली अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए • पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत सोलर पंप के लिए 20 लाख किसान शामिल करना । किसान बंजर भूमि में सौर ऊर्जा संयंत्र लगा सकेंगे। • किसान रेल सेवा : शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं फल, सब्जियों, दूध, मांस, मछली आदि के लिए नई रेल सेवा • नाबार्ड से ऋण : 2020-21 के लिए कृषि के लिए नाबार्ड से 15 लाख करोड़ का ऋण  • दूध प्रसंस्करण क्षमता : 2025 तक दोगुनी कर 10.80 करोड़ टन करने का लक्ष्य • सागर मित्र योजना : मत्स्य पालन में रोजगार बढ़ाने के लिए • जैविक खेती को बढ़ावा , पंचायत स्तर पर स्टोरेज का निर्माण • पानी की समस्या से जूझ रहे 16 जिलों के लिए व्यापक उपाय का प्रस्ताव स्वास्थ्य ...

भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90) 12th Economics NCERT/CBSE (Hindi Medium) Lesson 2

                        Chapter – 2 भारतीय अर्थव्यवस्था  Indian Economy (1950-90) • भारत स्वतंत्र 15 अगस्त 1947 • स्वतंत्र भारत के नव निर्माण के लिए कौन सी आर्थिक प्रणाली उपयुक्त रहेगी ?             पूंजीवादी, समाजवादी • प. नेहरू : अर्थव्यवस्था में सरकारी तथा निजी क्षेत्र की भूमिका आर्थिक प्रणालियों के प्रकार : Types of Economic system प्रत्येक अर्थव्यवस्था / समाज के सामने तीन प्रमुख केंद्रीय समस्याएं • किन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाए • उत्पादन कैसे किया जाए • उत्पादन किसके लिए किया जाए (वितरण की समस्या) उपरोक्त समस्याओं का समाधान बाजार की शक्तियों (मांग एवं पूर्ति) पर निर्भर करता है ‌। सामान्यतया आर्थिक प्रणाली निम्न तीन प्रकार की हो सकती हैं   1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था 2. समाजवादी अर्थव्यवस्था 3. मिश्रित अर्थव्यवस्था भारत द्वारा नव निर्माण कार्य के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का मार्ग चुना गया जिसमें सरकार द्वारा योजना बनाई जाएगी ...

12th NCERT (Lesson 1) भारत का आर्थिक विकास स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

        भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास                      Lesson 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था • किसी देश की अर्थव्यवस्था में उन सभी आर्थिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो लोगों के जीवन स्तर को निर्धारित करते हैं। • ब्रिटिश उपनिवेश के कारण स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही खराब अवस्था में थी। • ब्रिटिश उपनिवेश का मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में औद्योगिकरण की प्रक्रिया को तेज करना  1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो उस समय भारत की अर्थव्यवस्था बहुत ही खराब दशा में अपंग अर्थव्यवस्था (Crippled Economy) थी। स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति       (विशेषताएं) : Features 1. आर्थिक विकास का निम्न स्तर : स्थिर अर्थव्यवस्था ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने भारत में कभी भी राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय की गणना नहीं की थी। स्वतंत्रता के समय प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर      PCI  ₹230 : 1947-48 डॉ V.K.R.V. राव ...

12th NCERT (Lesson 1) समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय : introduction Macroeconomics

समष्टि अर्थशास्त्र : Macro Economics           Chapter – 1 परिचय  (Introduction) ग्रीक शब्द : मेक्रो ,          अर्थ : बड़ा परिभाषा : आर्थिक विश्लेषण की वह शाखा जिसमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था से संबंधित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है ‌ जैसे : राष्ट्रीय आय, कुल उत्पादन, कुल निवेश, कुल बचत, समग्र मांग समग्र, समग्र पूर्ति, कुल रोजगार, सामान्य कीमत स्तर आदि । समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव विश्वव्यापी मंदी 1929-33                1936 : प्रोफेसर J.M.कींस           पुस्तक : द जनरल थ्योरी ऑफ एंप्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रक / संरचना : Structure / Sector                     आर्थिक एजेंट : जो आर्थिक निर्णय लेते हैं 1. पारिवारिक अथवा घरेलू क्षेत्र 2. उत्पादक अथवा व्यवसायिक फर्म 3. सरकार 4. बाह्य क्षेत्र / विदेशी क्षेत्र अर्थशास्त्र का क्षेत्र / विषय वस्तु : Scope A.समष्टिगत आर्थिक स...

सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग , एमएसएमई , Micro,Small & Medium Enterprises

MSME : Micro , Small & Medium Enterprises           सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग • MSME मंत्रालय द्वारा संचालित • एमएसएमई में सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों का पंजीकरण जिन्हें कई सरकारी लाभ मिलते हैं। जैसे : कम ब्याज दर पर ऋण, जीएसटी में छूट, सब्सिडी, टैक्स बेनिफिट्स आदि । • ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, उद्योग आधार अंक 12 अंकों का, अद्वितीय नंबर आवंटित • सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम 2006 के अनुसार MSME को दो भागों में बांटा गया है          1. विनिर्माण क्षेत्र के उद्योग          2.  सेवा क्षेत्र के उद्यम परिभाषाएं अधिनियम 2006 के अनुसार        प्लांट एवं मशीनरी में निवेश सीमा के आधार पर विनिर्माण क्षेत्र के लिए सूक्ष्म उद्यम : 25 लाख तक निवेश लघु उद्यम : 25 लाख से 5 करोड़ तक निवेश मध्यम उद्यम : 5 करोड़ से 10 करोड़ तक सेवा क्षेत्र के लिए सूक्ष्म उद्यम : 10 लाख  तक निवेश लघु उद्यम : 10 लाख से दो करोड़ तक मध्यम उद्यम : 2 करोड़ से 5 करोड़ तक May...

Rational Expectations Hypothesis (विवेकपूर्ण प्रत्याशा परिकल्पना)

The Rational Expectations Hypothesis (REH)   RETEX Hypothesis    विवेकपूर्ण प्रत्याशाओं की परिकल्पना Rational (विवेकशीलता) : Expectation (प्रत्याशा) : इस परिकल्पना के अनुसार आर्थिक एजेंटों के निर्णय निम्न तीन तत्वों पर निर्भर होते हैं • विवेकशीलता : Human Rationality • भूतकालीन अनुभव : Past Experience • अपने पास उपलब्ध सूचनाएं : Available Information • 1930 : विश्वव्यापी मंदी (Depression) : कींस विश्लेषण • 1960  : स्टैगफ्लेशन  (Stagflation)  ( बेरोजगारी एवं स्फीति) • 1960-70 : मौद्रिकवादी अर्थशास्त्री  , मिल्टन फ्रीडमैन Adaptive Hypothesis अनुकूली प्रत्याशाएं • इसके अनुसार आर्थिक एजेंटों की प्रत्याशा होती हैं कि भविष्य भी भूत की प्रवृत्तियों के अनुसार ही होगा उदाहरण : फ्रीडमैन का फिलिप्स वक्र इसी पर आधारित • प्रत्याशाएं केवल भूतकालीन अनुभवों पर ही निर्भर • अपनी प्रत्याशाओं को पिछली पूर्वानुमान त्रुटि के अनुसार संशोधित • पिछले आंकड़ों को देखकर निष्कर्ष निकालना , जैसे : पिछले 10 वर्षों में ऐसा हुआ है , अब आगे भविष्...