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भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90) 12th Economics NCERT/CBSE (Hindi Medium) Lesson 2

                        Chapter – 2
भारतीय अर्थव्यवस्था  Indian Economy (1950-90)

• भारत स्वतंत्र 15 अगस्त 1947
• स्वतंत्र भारत के नव निर्माण के लिए कौन सी आर्थिक प्रणाली उपयुक्त रहेगी ?             पूंजीवादी, समाजवादी
• प. नेहरू : अर्थव्यवस्था में सरकारी तथा निजी क्षेत्र की भूमिका

आर्थिक प्रणालियों के प्रकार : Types of Economic system

प्रत्येक अर्थव्यवस्था / समाज के सामने तीन प्रमुख केंद्रीय समस्याएं
• किन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाए
• उत्पादन कैसे किया जाए
• उत्पादन किसके लिए किया जाए (वितरण की समस्या)
उपरोक्त समस्याओं का समाधान बाजार की शक्तियों (मांग एवं पूर्ति) पर निर्भर करता है ‌।
सामान्यतया आर्थिक प्रणाली निम्न तीन प्रकार की हो सकती हैं  
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
2. समाजवादी अर्थव्यवस्था
3. मिश्रित अर्थव्यवस्था

भारत द्वारा नव निर्माण कार्य के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का मार्ग चुना गया जिसमें सरकार द्वारा योजना बनाई जाएगी तथा निजी क्षेत्र की योजना प्रयास का एक अंग होगा।
योजना आयोग की स्थापना : 1950 ,  अध्यक्ष : प्रधानमंत्री

योजना क्या है ?        What is Plan ?

• किसी देश के संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाए
• कुछ सामान्य एवं कुछ विशेष उद्देश्य को एक निश्चित समयावधि में प्राप्त करना
• भारत में पंचवर्षीय योजनाएं : पूर्व सोवियत संघ से लिया गया
• पंचवर्षीय योजना की अवधि में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य तथा आगामी 20 वर्षों में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों का उल्लेख

भारतीय योजनाओं के शिल्पकार  (Architect) :
 पी. सी. महालनोबिस
• सांख्यिकीविद : प्रशांत चंद्र महालनोबिस (P.C. Mahalnobis)
                            (भारतीय योजनाओं का शिल्पकार)
भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) की स्थापना ,      सांख्य नामक जर्नल
• जन्म : 1893 कोलकाता
• योजना का सही रूप से प्रारंभ द्वितीय पंचवर्षीय योजना से
• द्वितीय पंचवर्षीय योजना महालनोबिस के विचारों पर आधारित : 
भारत के आर्थिक विकास के लिए भारत तथा विदेशों से प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों को आमंत्रित करने की सलाह

वर्तमान में नियोजन का स्वरूप नीति (NITI) आयोग 
• स्थापना : 1 जनवरी 2015 , योजना आयोग के स्थान पर
• NITI : National Institute for Transforming India
स्थापना के उद्देश्य
• सरकार के थिंक टैंक के रूप में कार्य
• सहकारी संघवाद को बढ़ावा
• सतत् विकास के लक्ष्यों को बढ़ावा
• नीति निर्माण में विकेंद्रीकरण की भूमिका सुनिश्चित करना

पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य / लक्ष्य 

1. संवृद्धि : Growth                                  
2. आधुनिकीकरण : Modernisation
3. आत्मनिर्भरता : Self-Reliance              
4. समानता : Equity

1.संवृद्धि : Growth

• देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि
• उत्पादक पूंजी तथा सेवाओं की दक्षता में वृद्धि
• सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) में वृद्धि
• जी.डी.पी. में योगदान : कृषि, औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र

2.आधुनिकीकरण : Modernisation

• उत्पादन बढ़ाने के लिए नई प्रौद्योगिकी अपनाना
जैसे : किसानों द्वारा पुराने बीजों के स्थान पर नए किस्म 
            के बीजों का प्रयोग करना
         : फैक्ट्री में नई मशीनों का प्रयोग करना
• साथ ही सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना
 जैसे : महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार
    महिला प्रतिभाओं का बैंको, कारखानों, विद्यालयों आदि में प्रयोग

3.आत्मनिर्भरता : Self-reliance
• आधुनिकीकरण एवं आर्थिक समृद्धि अपने तथा अन्य राष्ट्रों से आयातित संसाधनों के प्रयोग से
• प्रथम 7 पंचवर्षीय योजनाओं में आत्मनिर्भरता को महत्व
• उन चीजों का आयात नहीं करना जिनका उत्पादन देश में ही संभव हो
• विशेषकर खाद्यानो पर आत्मनिर्भरता पर जोर
• खाद्यान्न, प्रौद्योगिकी एवं पूंजी पर विदेशी निर्भरता से विदेशी हस्तक्षेप बढ़ता है और हमारी संप्रभुता में बाधा

4.समानता : Equity

• उच्च वृद्धि दर एवं अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने के बाद भी निर्धनता संभव
• यह सुनिश्चित करना कि आर्थिक संवृद्धि का लाभ निर्धन वर्ग को भी सुलभ हो
• भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं जैसी मूलभूत आवश्यकता पूरे करने में समर्थ
• आय एवं संपत्ति की भी असमानता में कमी हो ।

कृषि क्षेत्र : Agriculture Sector

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व
• राष्ट्रीय आय (GDP) में योगदान
• खाद्यान्नों की पूर्ति
• रोजगार में सहायक
• उद्योगों के लिए कच्चेमाल की आपूर्ति

कृषि की प्रमुख समस्याएं : Problems

• सिंचाई सुविधाओं का अभाव
• कृषि जोतों का छोटा आकार एवं बिखराव
• वित्तीय सुविधाओं का अभाव
• उत्पादन की अप्रचलित तकनीक
• बाजार सुविधाओं का अभाव

योजना काल में कृषि क्षेत्र का विकास (1950-90)

स्वतंत्र भारत के नीति निर्माताओं ने कृषि क्षेत्र में भूमि सुधारों तथा उच्च पैदावार वाली किस्म के बीजों (HYVs) की प्रयोग द्वारा भारतीय कृषि में एक क्रांति का संचार किया।

1.भू-सुधार : Land Reforms  :  स्वतंत्रता से पूर्व जमींदार, महालवार, रैयत आदि किसानों से भू राजस्व के रूप में किराया वसूलते थे ‌। किसानों के साथ दासो जैसा व्यवहार करते थे, उनका शोषण करते थे।
    भू सुधार की आवश्यकता
• बिचौलियों / मध्यस्थों का उन्मूलन
• बंजर भूमि, जंगल आदि राज्य सरकार को हस्तांतरित करने के लिए
• भूमि वितरण में समानता
• किसानों को भूमि का मालिक बनाना

भू-सुधार के प्रकार

(I)जमीदारी प्रथा का उन्मूलन : बिचौलियों का उन्मूलन
• कृषकों को भूमि का मालिक (भू स्वामित्व)
• लगभग 200 लाख किसानों का सरकार से सीधा संपर्क
• भू-स्वामित्व से कृषि उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहन
• कुछ क्षेत्रों में बड़े-बड़े जमीदारों का भूमि पर स्वामित्व
• छोटे किसानों को इससे लाभ नहीं 
(ii)भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारण : Ceiling
• किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना
• उद्देश्य : भू-स्वामित्व के संकेंद्रण को कम करना
• भूमि का पुनर्वितरण
• भूमि की चकबंदी
• सहकारी खेती
• बड़े जमीदारों द्वारा इस कानून को न्यायालय में चुनौती
• केरल एवं पश्चिम बंगाल में भू सुधार कार्यक्रम सफल

हरित क्रांति : Green Revolution     1966-67

आशय : कृषि उत्पादन में उस तीव्र वृद्धि से हैं जो ऊंची उपज देने वाले बीजों (HYVs), रासायनिक उर्वरक तथा नई तकनीक के प्रयोग के फलस्वरूप हुई। (कृषि की नई रणनीति/बीज उर्वरक क्रांति)
विश्व में हरित क्रांति के जनक : नॉर्मन बोरलॉग ( मैक्सिको)
भारत में हरित क्रांति के जनक : डॉ. M.S. स्वामीनाथन
                       गेहूं की नई किस्म विकसित (शरबती सोना, पुसा लरमा)

भारत में हरित क्रांति के चरण / अवस्थाएं

प्रथम चरण : केंद्रीकरण का चरण

1960 के दशक के मध्य से 1970 के दशक के मध्य तक
खाद्यान्नों (गेहूं,चावल) के उत्पादन में विशेष वृद्धि
सीमित विस्तार : पंजाब, उत्तरप्रदेश, हरियाणा
द्वितीय चरण : विकेंद्रीकरण का चरण
1970 के मध्य दशक से 1980 के मध्य दशक तक
संपूर्ण भारत में विस्तार , 5 फसल समूह

हरित क्रांति की प्रमुख विशेषताएं
• उच्च पैदावार वाली किस्म के बीजों का प्रयोग
• रासायनिक उर्वरक का प्रयोग
• कीटनाशकों का प्रयोग
• कृषि में यंत्रीकरण
• सिंचाई सुविधाओं का विस्तार

• विक्रय अधिशेष की प्राप्ति
• खाद्यान्नों का बफर स्टॉक (उत्पादकता में वृद्धि)
• खाद्यानों में आत्मनिर्भरता एवं कीमतों में स्थिरता
• किसानों की आय में वृद्धि
• उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि

हरित क्रांति की सीमाएं
• खाद्यान्नों तक सीमित
• असमानता में वृद्धि
• क्षेत्रीय असमानता में वृद्धि
• मात्रात्मक वृद्धि, गुणवत्ता एवं पोषण में गिरावट
• पर्यावरण को नुकसान
• वाणिज्य फसलों के उत्पादन में असफल

कृषको को आर्थिक सहायता / सहायिकी

कृषि सहायकी से आशय किसानों को मिलने वाली सहायता से हैं या किसानों को बाजार दर से कम दर पर आगतो को उपलब्ध कराना।
किसानों को HYV प्रौद्योगिकी एवं उर्वरक सहायिकी

पक्ष में तर्क
• नई प्रौद्योगिकी जोखिम पूर्ण
• निर्धनता
• कृषि जोखिम पूर्ण व्यवसाय

विपक्ष में तर्क
• केवल बड़े समृद्ध किसानों को लाभ : असमानता में वृद्धि
• एक सीमा के बाद आर्थिक सहायता संसाधनों के व्यर्थ उपयोग को बढ़ावा देती है
• सरकारी कोष पर अतिरिक्त बोझ 

उद्योग एवं व्यापार  

उद्योगों का महत्व 
• रोजगार का सृजन एवं स्थायी प्रकृति
• कृषि का विकास 
• प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग
• क्षेत्रीय संतुलन में सहायक
• सकल घरेलू उत्पाद में योगदान
औद्योगिक नीति (1956) : भारत का औद्योगिक संविधान
• उद्योगों की तीन श्रेणियां
प्रथम श्रेणी : सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग (17 उद्योग)
द्वितीय श्रेणी: सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र (12 उद्योग)
तृतीय श्रेणी : शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए
• औद्योगिक लाइसेंस : निजी क्षेत्र के लिए
• लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास पर बल
• कर्मचारियों के लिए तकनीकी शिक्षा एवं प्रशिक्षण
सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका
• मजबूत औद्योगिक आधार का निर्माण
• आधारभूत संरचना का विकास
• पिछड़े क्षेत्रों का विकास
• आर्थिक शक्ति के केंद्रीकरण को रोकने के लिए
• आय एवं धन के वितरण की समानता बढ़ाने के लिए
• रोजगार प्रदान करने के लिए
• आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देने के लिए

लघु उद्योग : Small Scale Industries

 ग्राम एवं लघु उद्योग समिति (कर्वे समिति) : 1955
 ग्राम विकास को प्रोत्साहित करने के लिए लघु उद्योगों के प्रयोग पर बल,  अनेक रियायतें , अनेक उत्पाद आरक्षित
लघु उद्योग : 1950 में ऐसी इकाइयां जिसमें अधिकतम ₹ 5 लाख का निवेश किया जाए । वर्तमान समय में ₹ एक करोड़ का अधिकतम निवेश किया जा सकता है।
 अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों की भूमिका
• श्रम प्रधान
• स्वरोजगार 
• आयात प्रतिस्थापन 
• निर्यात को बढ़ावा 
• आय का समान वितरण 
• उद्योगों का विकेंद्रीकरण 
• बड़े स्तर के उद्योगों के लिए आधार 
• कृषि विकास
लघु उद्योगों की समस्याएं
• वित्त की समस्या 
• कच्चे माल की समस्या 
• बाजार की समस्या 
• अप्रचलित मशीन एवं संयंत्र 
• निर्यात क्षमता का अल्प उपयोग 
• बड़े स्तरीय उद्योगों से प्रतिस्पर्धा





व्यापार नीति (आयात प्रतिस्थापन): अंतर्मुखी व्यापार नीति
घरेलू उत्पादन से आयातो को प्रतिस्थापन करने की नीति
प्रथम 7 पंचवर्षीय योजना इसी से संबंधित थी
घरेलू उद्योगों को संरक्षण के तरीके
• प्रशुल्क : आयातित वस्तुओं पर कर
• कोटा : आयात की जाने वाली वस्तु की अधिकतम मात्रा
आयात प्रतिस्थापन के कारण
• विकसित अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं से प्रतियोगिता करना संभव नहीं
• महत्वपूर्ण वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी मुद्रा बचाना
औद्योगिक विकास पर नीतियों का प्रभाव
• GDP हिस्सेदारी में वृद्धि : 
    1950-51 (11.8%) ,    1990-91 (24.6%)
• औद्योगिक क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 6% प्रशंसनीय
• संरक्षण नीति से घरेलू उद्योगों का विकास


आलोचनाएं : औद्योगिक विकास की नीतियां
• कुछ वस्तुओं के उत्पादन पर सरकारी एकाधिकार की आवश्यकता नहीं थी     जैसे : दूरसंचार
• सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में अंतर नहीं कर पाए
• अनेक सार्वजनिक उपक्रम घाटे में
• औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली का दुरुपयोग 
          (परमिट लाइसेंस राज)
• विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण नीति की आलोचना
• सार्वजनिक क्षेत्र का मूल्यांकन लाभ के आधार पर नहीं
निष्कर्ष : 

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