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Keynesian theory of money and prices , प्रो. कीन्स का मुद्रा तथा कीमतों का सिद्धांत




The Keynesian theory of money and prices
मुद्रा तथा कीमतों का केंजीय सिद्धांत (प्रो. कीन्स)

आधार : मुद्रा परिमाण के प्रतिष्ठित सिद्धांत की कमियां
• क्लासिकी द्वि-विभाजन (dichotomy) : मुद्रा सिद्धांत तथा कीमत सिद्धांत अलग-अलग
• मुद्रा के परिमाण तथा कीमतों में प्रत्यक्ष एवं आनुपातिक संबंध
Direct and proportional relation between quantity of Money & prices
• मुद्रा की तटस्थता Neutrality of money : स्थैतिक संतुलन Static Equilibrium

प्रो. कींस के अनुसार : According to Keynes

• मुद्रा सिद्धांत एवं कीमत सिद्धांत का एकीकरण Integration
    वास्तविक एवं मौद्रिक क्षेत्रों (Real & Monetary sector) का 
• मुद्रा की मात्रा में वृद्धि से कीमतों में वृद्धि लेकिन मुद्रा की मात्रा एवं कीमतों में अप्रत्यक्ष संबंध increase in prices due to increase in in quantity of money indirect relationship between quantity of money and prices

मान्यताएं : Assumptions
• उत्पादन के साधनों की पूर्ति  लोचदार (बेरोजगारी की स्थिति में)
Supply of factors of production elastic (Unemployment)
• मुद्रा विनिमय का माध्यम : प्रभावी मांग एवं मुद्रा की मात्रा में समान अनुपात में वृद्धि (बेकार संसाधन) money as a medium of exchange
• समस्त बेकार संसाधन समरूप, विभाज्य एवं परस्पर परिवर्तनशील
all unemployed resources Homogeneous, divisible and inter-changeable
• पैमाने के स्थिर प्रतिफल (उत्पादन बढ़ने पर कीमतें स्थिर)   Constant returns to scale





मुद्रा परिमाण सिद्धांत का पुनः व्यवस्थापन : Keynes
Reformulation of quantity theory of money : Keynes
          कारणता का विपरीत सिद्धांत : Contra Quantity theory of Money
• मुद्रा की मात्रा (M) एवं कीमत स्तर (P) में अप्रत्यक्ष & गैर-आनुपातिक संबंध होता है
Indirect & Non-Proportional relationship between M and price level
उपरोक्त मान्यता दी होने पर मुद्रा की मात्रा (M) तथा कीमतों (P) में परिवर्तन के मध्य कार्य-कारण ब्याज दर (rate of interest) के माध्यम से अप्रत्यक्ष (indirect) होती हैं।
प्रोफेसर कींस के अनुसार मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर सबसे पहले ब्याज दर प्रभावित होती हैं । मुद्रा की मात्रा में वृद्धि से ब्याज दर में कमी होती हैं और पूंजी की सीमांत उत्पादकता स्थिर रहने पर मुद्रा की मात्रा बढ़ने से निवेश के लिए मांग पड़ेगी । निवेश मांग बढ़ने तथा अर्थव्यवस्था में गुणक के क्रियाशील होने से आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि होती हैं अर्थात प्रभावी मांग में वृद्धि होती हैं।
अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी होने के कारण साधनों के पारिश्रमिक में वृद्धि नहीं होगी । पैमाने के स्थिर प्रतिफल क्रियाशील होने से उत्पादन में वृद्धि होने पर भी कीमतों में वृद्धि नहीं होगी ऐसी स्थिति में जिस अनुपात में प्रभावी मांग बढ़ेगी उसी अनुपात में उत्पादन तथा रोजगार भी बढ़ेगा और जिस अनुपात में मुद्रा की मात्रा बढ़ेगी उसी अनुपात में प्रभावी मांग भी बढ़ेगी। 

जब अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति आ जाती हैं तो मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन होने से उत्पादन में कोई परिवर्तन नहीं होगा तथा प्रभावी मांग में भी कोई परिवर्तन नहीं होगा । मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन का प्रभाव कीमतों पर पड़ेगा जिस अनुपात में मुद्रा की पूर्ति बढ़ती हैं उसी अनुपात में कीमतों में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष
“जब तक बेकारी (Unemployment) पाई जाती हैं तो रोजगार की मात्रा (N) उसी अनुपात में बदलती हैं जिस अनुपात में मुद्रा की मात्रा (M) बदलती है जब पूर्ण रोजगार हैं तो कीमतें (P) उसी अनुपात में बदलती हैं जिस अनुपात में मुद्रा की मात्रा बदलती हैं।“
इस प्रकार संक्षेप में
• मुद्रा के मात्रा (M) में वृद्धि होने पर कीमतें (P) तभी बढ़ेगी जब पूर्ण रोजगार (Full Employment) की स्थिति आ जाती हैं , उससे पहले नहीं
• मुद्रा की मात्रा (M) का कीमत स्तर (P) पर प्रभाव प्रत्यक्ष नहीं होकर अप्रत्यक्ष होता है



धन्यवाद।

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