सार्वजनिक व्यय के प्रभावों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. सार्वजनिक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव
2. सार्वजनिक व्यय का वितरण पर प्रभाव
3. सार्वजनिक व्यय का आर्थिक जीवन पर प्रभाव
1.सार्वजनिक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का प्रत्येक व्यय उत्पादक होता है । सामान्यतः औद्योगिक विकास पर जो भी किया जाता है उससे उत्पादन बढ़ता है किंतु सामाजिक सेवाओं पर किया गया व्यय भी लोगों की कार्यकुशलता बढ़ाकर अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन बढ़ाता है ।
प्रोफेसर डॉल्टन ने सार्वजनिक व्यय के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों को तीन भागों में विभाजित किया है –
• कार्य करने एवं बचत करने की योग्यता पर प्रभाव
• कार्य करने एवं बचत करने की इच्छा पर प्रभाव
• विभिन्न क्षेत्रों एवं रोजगार में साधनों के स्थानांतरण पर प्रभाव
A.कार्य करने एवं बचत करने की योग्यता पर प्रभाव
सार्वजनिक व्यय कई प्रकार से कार्य करने की योग्यता को बढ़ा सकता है -
• क्रयशक्ति में वृद्धि के द्वारा : लोगों को वेतन, मजदूरी, पेंशन, भत्ते एवं अन्य भुगतान
• वस्तु एवं सेवाओं की सुविधा : विशेष रूप से निर्धन व्यक्तियों को निशुल्क अथवा रियायती दर पर वस्तुएं एवं सेवाएं उपलब्ध कराना । जैसे: निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, रियायती आवास आदि।
• सुविधाओं के माध्यम से : परिवहन सुविधा सिंचाई सुविधा विद्युत परियोजनाएं आदि।
बचत करने की योग्यता पर प्रभाव : सार्वजनिक व्यय से लोगों की कार्य करने की योग्यता बढ़ती है जिससे उनकी आय भी बढ़ती है और बचत करने की सीमा भी बढ़ जाती हैं ।
B.कार्य करने एवं बचत करने की इच्छा पर प्रभाव
इसका संबंध लोगों की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया से हैं। इसे दो भागों में बांट सकते हैं :-
वास्तविक व्यय का प्रभाव एवं संभावित व्यय का प्रभाव
• वास्तविक व्यय का प्रभाव : जब सार्वजनिक व्यय से लोगों की क्रय शक्ति बढ़ती हैं तो कुछ लोगों की कार्य करने की इच्छा कम हो जाती हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि सामान्य जीवन स्तर के अनुरूप उनकी आय पर्याप्त हो गई हैं और उन्हें कार्य करने की आवश्यकता नहीं है । लेकिन अधिकांश लोग अपने वर्तमान जीवन से संतुष्ट नहीं होते हैं और अपने जीवन स्तर को ऊंचा बनाने के लिए कार्य करने की इच्छा समाप्त नहीं होती है ।
• संभावित व्यय का प्रभाव : सामान्यतया सार्वजनिक व्यय से प्राप्त आय का कार्य करने एवं बचत करने की इच्छा पर अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता है बल्की विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात कार्य एवं बचत करने की इच्छा कम हो जाती हैं क्योंकि उनकी सरकार पर निर्भरता बढ़ जाती हैं
C.साधनों के स्थानांतरण पर प्रभाव स्थानांतरण
• प्रत्यक्ष स्थानांतरण पर प्रभाव : जैसे सरकार द्वारा रक्षा पर काफी मात्रा में व्यय किया जाता है और यदि सरकार रक्षा पर व्यय नहीं करती तो वे अन्य उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकते थे।
• प्रोत्साहित स्थानांतरण :
कुछ सार्वजनिक व्यय लोगों को अपने साधनों को उत्पादक कार्य में लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
जैसे : सरकार परिवहन सुविधाओं का विस्तार करती हैं तो लोगों को परिवहन एवं बाजार की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं और उन्हें उत्पादन करने की प्रेरणा मिलती हैं ।
• वर्तमान से भविष्य के प्रयोगों में स्थानांतरण यदि पूंजीगत वस्तुओं पर व्यय किया जाता है तो यह वर्तमान प्रयोगों से भविष्य के प्रयोगों की और स्थानांतरण है क्योंकि ऐसे साधनों को उपभोग पर व्यय ना करके उत्पादक वस्तु पर व्यय किया जाता है ।
• आर्थिक विकास के लिए कभी-कभी साधनों का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर किया जाता है। जैसे संतुलित विकास के लिए विकसित क्षेत्रों की तुलना में पिछड़े क्षेत्रों पर अधिक व्यय करना।
2.सार्वजनिक व्यय का वितरण पर प्रभाव
सार्वजनिक व्यय द्वारा वितरण की असमानता को दूर कर सकते हैं अर्थात अमीर व्यक्तियों पर उच्च कर लगाकर उनसे प्राप्त आय को निर्धन व्यक्तियों पर व्यय करना।
प्रोफेसर डाल्टन के अनुसार सार्वजनिक व्यय को भी तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं:- प्रतिगामी,आनुपातिक एवं प्रगतिशील । प्रतिगामी व्यय : इसमें जिन व्यक्तियों की आय कम होती हैं उन पर सार्वजनिक व्यय आनुपातिक रूप से कम होता है।
अनुपातिक व्यय : व्यक्ति की आय कुछ भी हो उसे अपनी आय के अनुपात में ही लाभ प्राप्त होता है ।
प्रगतिशील व्यय : इसमें जिनकी आय कम होती हैं उन पर अधिक अनुपात में व्यय किया जाता है ।
3.सार्वजनिक व्यय का आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव
प्रो. कींस ने आर्थिक उतार-चढ़ावों को दूर करने के लिए राजकोषीय नीति का समर्थन किया था
मंदी के समय सार्वजनिक व्यय : मंदी के समय सार्वजनिक व्यय अधिक किया जाना चाहिए।
मुद्रा प्रसार की स्थिति में : इस स्थिति में सार्वजनिक व्यय के माध्यम से मुद्रा प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है। मुद्रा प्रसार की स्थिति में सार्वजनिक व्यय ऐसी परियोजनाओं पर किया जाना चाहिए जिस पर शीघ्रता से उत्पादन बढ़े जैसे: कृषि क्षेत्र में सिंचाई, उर्वरक एवं अच्छे बीजों पर व्यय किया जाना चाहिए। नए उद्योगों की आधारभूत संरचना पर व्यय करना चाहिए । पुराने उद्योगों का विस्तार करना चाहिए । कमजोर उद्योगों को आर्थिक सहायता आदि । मुद्रास्फीति के समय सरकार को आधिक्य का बजट बनाना चाहिए।
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