उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण एक मूल्यांकन
परिचय
• वर्ष 1991 भारत विदेशी ऋण के भुगतान की स्थिति में नहीं था
• विदेशी ऋण से संबंधित आर्थिक संकट - सरकार विदेशी ऋणों के पुनर्भुगतान करने में सक्षम नहीं थी, विदेशी मुद्रा रिजर्व (मुद्रा भंडार) एक स्तर पर गिरा दिया गया था जो कि 15 दिनों तक की आवश्यक आयात के लिए भी पर्याप्त नहीं था ।
• अनिवार्य वस्तुओं के लिए कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई थी
इसी कारण सरकार ने कुछ नई नीतियों को अपनाया जिससे हमारे विकास की रणनीतियों की संपूर्ण दिशा में बदलाव आ गया
पृष्ठभूमि : भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता
भारत में आर्थिक सुधार क्यों प्रारंभ किए गए ?
वित्तीय संकट का वास्तविक कारण
• 1980 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का अकुशल प्रबंधन
• व्यय > आय = घाटा (सरकारी बैंकों, लोगों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से इसे वित्त के लिए उधार लेती है)
• सामान्य प्रशासन के लिए करो एवं सार्वजनिक उद्यम आदि के माध्यम से फंड की व्यवस्था
• हम कच्चे तेल जैसे सामान आयात करते हैं - हम डॉलर में भुगतान करते हैं (डॉलर निर्यात से कमाते हैं)
• कम राजस्व - बेरोजगारी, गरीबी, जनसंख्या विस्फोट को पूरा करने के लिए राजस्व में कमी
• कराधान जैसे आंतरिक स्रोतों से आय उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है
• अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों तथा अन्य देशों से उधार ली गई विदेशी मुद्रा को उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए खर्च किया गया था।
1980 के दशक के अंत तक – आर्थिक संकट में चिंताजनक
निम्न कारणों से भारत में आर्थिक सुधार प्रारंभ किए गए
• उच्च राजकोषीय घाटा : व्यय > राजस्व
• मुद्रास्फीति : आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में तेजी से वृद्धि
• भुगतान संतुलन में घाटा : आयातों में तेजी से वृद्धि
• सार्वजनिक क्षेत्र की असफलता
• विदेशी मुद्रा भंडार में निरंतर कमी
अंतर्राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज का भुगतान करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा का अभाव , अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत में निवेश नहीं करना चाहते थे
भारत ने IBRD (इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकन्स्ट्रक्शन एंड डवलपमेंट) / विश्व बैंक और IMF से संपर्क किया - संकट के प्रबंधन के लिए 7 अरब डॉलर का ऋण प्राप्त किया –
ऋण प्राप्ति की शर्तें
• भारत को निजी क्षेत्र पर प्रतिबंध हटाकर
• सरकार की भूमिका को कम करना
• व्यापार प्रतिबंध हटाकर अर्थव्यवस्था को उदार बनाना
भारत ने NEP (नई आर्थिक नीति) की घोषणा की
प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव , वित्त मंत्री : डॉ मनमोहन सिंह
• प्रतियोगी वातावरण बनाएं - फर्मों के प्रवेश और विकास के लिए बाधाएं दूर करें
स्थिरीकरण उपाय: अल्पकालीन अवधि के उपायों में कुछ कमजोरियों को सुधारने का उपाय है जो कि B.O.P. में विकसित हुए हैं और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने के लिए।
स्थिरीकरण उपायों का प्रमुख उद्देश्य पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने और बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता थी
संरचनात्मक सुधार नीतियां : दीर्घकालीन उपाय
अर्थव्यवस्था की दक्षता (कुशलता) में सुधार और भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में कठोरता को दूर करके इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करना
• इसके लिए सरकार ने 3 नीतियां अपनाई –
उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण (LPG)
उदारीकरण : LIBERALISATION
अर्थव्यवस्था के नियमन के लिए बनाए गए नियम कानून (प्रतिबंधों) को दूर कर अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र बनाना
1980 में औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली, आयात-निर्यात नीति, प्रौद्योगिकी उन्नयन, राजकोषीय नीति और विदेशी निवेश के क्षेत्रों में उदारीकरण
1991 में शुरू की गई सुधार नीतियां अधिक व्यापक थीं
1.औद्योगिक क्षेत्र में सुधार – Reforms in Industrial sector
आर्थिक सुधारों (1991) से पूर्व कमियां / दोष
• उद्योग लाइसेंस व्यवस्था : फर्म स्थापित करने बंद करने या उत्पादन की मात्रा का निर्धारण करने के लिए सरकार से अनुमति आवश्यक थी ।
• अनेक उद्योगों में निजी उद्यमों का प्रवेश प्रतिबंधित
• कुछ वस्तुओं का उत्पादन केवल लघु उद्योगों के लिए ही आरक्षित
• निजी उद्यमियों पर कुछ उत्पादों के कीमत निर्धारण तथा वितरण पर अनेक सरकारी नियंत्रण
1991 के बाद सुधार
औद्योगिक लाइसेंसिंग व्यवस्था की समाप्ति
• एल्कोहल, सिगरेट , जोखिम भरे रसायन , औद्योगिक विस्फोटकों, इलेक्ट्रॉनिकी, विमानन तथा औषधि इन उत्पादों को छोड़कर सभी श्रेणियों के लिए औद्योगिक लाइसेंस समाप्त कर दिया गया था। वर्तमान में आरक्षित उद्योग रक्षा, परमाणु ऊर्जा और रेलवे हैं
• लघु उद्योगों में उत्पादित अनेक वस्तुएं अनारक्षित श्रेणी में
• अनेक वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण बाजार द्वारा
2.वित्तीय क्षेत्रक सुधार : Financial Sector Reforms
• वाणिज्यिक बैंक, निवेश बैंक, स्टॉक एक्सचेंज और विदेशी मुद्रा बाजार
• RBI द्वारा विनियमित (धन की राशि, ब्याज दर, उधार की प्रकृति तय करता है) - नियामक से RBI की सुविधा को कम करने के लिए उद्देश्य;
• निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थापना; बैंकों में 74 % तक की विदेशी निवेश सीमा
• खाताधारकों के हितों की रक्षा के लिए RBI का नियंत्रण
• विदेशी बैंकों, विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) व्यापारिक बैंक, म्यूचुअल फंड और पेंशन फंड को भारत में निवेश करने की अनुमति
3.कर व्यवस्था में सुधार : Tax Reforms
• राजकोषीय नीति के रूप में : कराधान और सार्वजनिक व्यय
• प्रत्यक्ष कर (आयकर और व्यवसाय लाभ – कर) में कमी
करों में कमी का मुख्य उद्देश्य उच्च कर दरों के कारण ही करो की चोरी होती हैं अतः करो की दर कम होने पर बचतो को बढ़ावा मिलता है और लोग स्वेच्छा से अपनी आय का विवरण दे देते हैं।
• अप्रत्यक्ष करों में भी सुधार : जीएसटी - बेहतर अनुपालन और सरलीकरण
वर्ष 2016 में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल एवं एकीकृत बनाने के लिए भारतीय संसद में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (GST) 2016 कानून पारित किया गया है जो 1 जुलाई 2017 से लागू हो गया है।
• करदाताओं को नियम पालन करने को प्रोत्साहन: कर प्रक्रिया का सरलीकरण
कर सुधारों से लाभ
• सरकार को अतिरिक्त आय की संभावना
• कर चोरी की कम संभावना
• एक राष्ट्र , एक कर , एक बाजार का निर्माण
4.विदेशी विनिमय (मुद्रा) सुधार : Foreign Exchange Reforms
• रुपए का अवमूल्यन : भुगतान संतुलन की समस्या को हल करने के लिए तत्काल कार्रवाई के रूप में रुपए का अवमूल्यन - विदेशी मुद्रा के प्रवाह में वृद्धि हुई ।
• विदेशी विनिमय बाजार में रुपए के मूल्य निर्धारण में सरकारी नियंत्रण से मुक्त
• विनिमय दरों का निर्धारण : मांग और पूर्ति पर आधारित
5.व्यापार और निवेश नीति सुधार
इस क्षेत्र में उदारीकरण का प्रमुख उद्देश्य निम्न थे :
• विदेशी निवेश तथा प्रौद्योगिकी की अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना
• स्थानीय उद्योगों की कार्यकुशलता को सुधारना
• स्थानीय उद्योगों को आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना
प्रमुख सुधार
• आयात और निर्यात पर मात्रात्मक प्रतिबंधों की समाप्ति
• प्रशुल्क / टैरिफ दरों में कमी
• आयात के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं की समाप्ति
हानिकारक एवं पर्यावरण संवेदी उद्योगों के अलावा अन्य सभी वस्तुओं पर से आयात लाइसेंस व्यवस्था की समाप्ति।
अप्रैल 2001 से कृषि वस्तुओं और औद्योगिक उपभोक्ता वस्तुओं के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंधों की समाप्ति।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय माल की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए निर्यात शुल्क की समाप्ति
निजीकरण : PRIVATISATION
सरकार के स्वामित्व वाले उद्यम के स्वामित्व या प्रबंधन का त्याग करना
• स्वामित्व एवं प्रबंधन से सरकारी निकासी
• सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की बिक्री
निजीकरण के कारण
• PSU का घाटे में चलना
• PSU की उत्पादन क्षमता कम
• राजनीतिक हस्तक्षेप
• प्रतिस्पर्धा एवं गुणवत्ता में कमी
निजीकरण के लिए उठाए गए कदम
• विनिवेश PSU का हिस्सा सार्वजनिक रूप से बेचकर
• FDI के अंत:प्रवाह को प्रोत्साहन
• शेयरों की बिक्री
• सार्वजनिक क्षेत्र का न्यूनीकरण
सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को प्रबंध के निर्णय में स्वतंत्रता प्रदान कर उनकी कार्यकुशलता को सुधारने का प्रयास किया है जिससे कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को
महारत्न, नवरत्न और लघुरत्न का दर्जा दिया है।
महारत्न - 3 साल के प्रदर्शन पर आधारित
वर्तमान में 10 महारत्न हैं: (January 2020)
o भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL)
o कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) , गेल (इंडिया) लिमिटेड : GAIL
o इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड(IOCL) , BPCL , HPCL
o एनटीपीसी लिमिटेड (NTPC) ,
o तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड : ONGC
o स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड : SAIL
o पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड
नवरत्न
• कंपनी को 'लघुरत्न श्रेणी - I' का दर्जा एक 'ए' लिस्टिंग के साथ होना चाहिए। पिछले 5 वर्षों के दौरान कम से कम 3 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छे' समझौता ज्ञापन (M.O.U.) होना चाहिए।
o हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड(HAL), महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) आदि जैसे 14 नवरत्न हैं (January 2020)
लघु रत्न
• जिन उपक्रमों ने पिछले तीन वर्षों में लाभ दिखाया है और सकारात्मक निवल मूल्य प्राप्त किया है, उन्हें लघुरत्न के लिए पात्र माना जा सकता है। वर्तमान में इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन लिमिटेड (IRCTC), एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) , भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) आदि की कुल संख्या में 74 लघुरत्न हैं (January 2020)
क्या लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करना उचित है ?
वैश्वीकरण : Globalisation
• विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का एकीकरण
विश्व को परस्पर निर्भर बनाना और एकीकरण (सीमा मुक्त विश्व की रचना)
इसमें आर्थिक , सामाजिक तथा भौगोलिक सीमाओं में विभिन्न गतिविधियों का सृजन
बाह्य प्रापण (आऊटसोर्सिंग) – अर्थ : विदेशों से विभिन्न सेवाएं प्राप्त करना।
यह वैश्वीकरण का परिणाम है। कंपनी बाह्य स्रोतों से सेवाएं लेती है जो पहले देश के भीतर से थी। जैसे : कानूनी सलाह, कंप्यूटर सेवाएं, विज्ञापन, सुरक्षा आदि।
• बाह्य स्त्रोतों से जैसे : मुख्य रूप से आईटी क्रांति, ध्वनि आधारित BPO या कॉल सेंटर, लेखांकन, बैंक सेवाएं, संगीत की रिकॉर्डिंग, फिल्म संपादन, पुस्तक शब्दांकन, चिकित्सा संबंधी परामर्श, शिक्षण कार्य इत्यादि के साथ आउटसोर्सिंग तेज हो गई है।
• अनेक विकसित देशों की कंपनियां भारत की छोटी-छोटी संस्थाओं से यह सेवाएं प्राप्त कर रही हैं।
• इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न सूचनाओं का प्रसार
• भारत एवं भारतीय कंपनियों का अन्य राष्ट्रों में विस्तार हो रहा है जैसे ओएनजीसी विदेश - 16 देशों के विस्तार; TISCO का विस्तार 26 देशों में , एचसीएल (HCL) के 31 देशों में कार्यालय हैं, डॉ रेड्डीज लैबोरेट्रीज
• कम वेतन दर और उपलब्ध कुशल श्रमशक्ति के कारण भारत अब एक वैश्विक आउटसोर्सिंग गंतव्य है।
बाह्य प्रापण (आउटसोर्सिंग) के लाभ
• उत्पादन लागत में कमी।
• गुणवत्ता में सुधार
• कार्य कुशलता में वृद्धि
• कम लागत पर कर्मचारियों की उपलब्धता
विश्व व्यापार संगठन : WTO
व्यापार और सीमा शुल्क पर सामान्य समझौता (GATT)
• 23 देशों द्वारा 1948 में गठित
• विश्व व्यापार में सभी देशों को समान अवसर देने के उद्देश्य से स्थापित
नया नाम : विश्व व्यापार संगठन World Trade Organization (WTO)
स्थापना : 1995 ; हेड क्वार्टर : जेनेवा (स्वीट्जरलैंड)
वर्तमान 2020 सदस्य देश : 164
WTO के कार्य
• कोई भी देश व्यापार पर मनमाने प्रतिबंध नहीं लगा सकता
• उत्पादन और सेवाओं के व्यापार को बढ़ावा देना
• विश्व संसाधनों का इष्टतम उपयोग
• पर्यावरण की रक्षा करना
• प्रशुल्क (टैरिफ) और गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करके और अधिक बाजार पहुंच की सुविधा प्रदान करता है
• द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना
भारत एवं विश्व व्यापार संगठन
• भारत डब्ल्यूटीओ का संस्थापक सदस्य
• विकासशील विश्व के हितों का संरक्षण करते हुए सक्रिय भागीदार
• व्यापार के उदारीकरण की प्रतिबद्धता को बनाए रखा
• व्यापार से अनेक प्रतिबंध हटाए : जैसे प्रशुल्क दरों में कमी
WTO की आलोचना
• कुछ विद्वानों का मानना है कि WTO द्वारा विकसित देशों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार किया जाता है तो फिर भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य क्यों है?
• विकसित देशों ने कृषि सब्सिडी पर शिकायत दर्ज कराई, विकासशील देशों को धोखा दिया गया क्योंकि उन्हें बाजार खोलने के लिए मजबूर किया जाता है और विकसित देशों के बाजारों तक विकासशील देशों को प्रवेश की अनुमति नहीं है।
सुधार के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था : एक समीक्षा (मूल्यांकन)
उपलब्धियां
1.सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि
कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में गिरावट आई है
• उद्योग क्षेत्र में उतार-चढ़ाव दर्ज हैं
• सेवा क्षेत्र में वृद्धि
क्षेत्रक 1980-91 2013-14 2014-15 2018-19
कृषि 3.6 4.2 - 0.2 2.9
उद्योग 7.1 5.0 5.9 6.9
सेवाएं 6.7 7.8 10.3 7.5
कुल योग 5.6 7.8 7.2 6.8
2.विदेशी निवेश ( प्रत्यक्ष एवं संस्थागत)
• विदेशी निवेश (प्रत्यक्ष तथा संस्थागत निवेश) 1990-91 में $ 100 मिलियन से बढ़कर 2017-18 में 30 बिलियन डॉलर हो गया
3.विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी से वृद्धि
• विदेशी विनिमय रिजर्व 1990-91 में 6 अरब डॉलर से बढ़कर 2018-19 में 413 अरब डॉलर
• 2011 में भारत विदेशी विनिमय रिजर्व का सातवां सबसे बड़ा धारक देश
4.निर्यातो में वृद्धि
भारत द्वारा किये जाने वाले निर्यात : वाहन, कल पुर्जे, इंजीनियरिंग उत्पाद, सूचना प्रौद्योगिकी उत्पाद, वस्त्र आदि ।
5. मुद्रास्फीति पर नियंत्रण
1990 – 17 % , 2001 – 6.5%
निर्यात में वृद्धि से बढ़ती हुई कीमतों पर नियंत्रण , मुद्रास्फीति की दर में कमी
6.राजकोषीय घाटे में कमी
1990 : 8.5% , वर्तमान में 5% से कम
सुधार कार्यक्रमों की कमियां/ दोष/ असफलता
सुधार कार्यक्रमों से विभिन्न समस्याओं का समाधान खोजने में विफलता हुई है अतः इसकी आलोचना भी की गई हैं जो निम्न समस्याओं रोजगार सृजन, कृषि , उद्योग, आधारभूत सुविधाओं तथा राजकोषीय नीति से संबंधित है।
1. रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं
GDP मैं वृद्धि हुई लेकिन अनेक अर्थशास्त्रियों का मानना है इन सुधारों ने रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा नहीं किए हैं
2.कृषि क्षेत्र की उपेक्षा
• कृषि क्षेत्र पर सार्वजनिक व्यय में कमी (बुनियादी ढांचे में, जिसमें सिंचाई, बिजली, सड़कों, बाजार संबंध और अनुसंधान और विस्तार शामिल हैं
• उर्वरक सब्सिडी को हटाने से उत्पादन की लागत में वृद्धि हुई है और छोटे और सीमांत किसानों को प्रभावित किया है
• नीति में कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कमी, न्यूनतम समर्थन मूल्य को हटाने और कृषि उत्पादों पर मात्रात्मक प्रतिबंध हटाने से कृषि से संबंधित नीतियों में परिवर्तन हो गए और किसानों को विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा
• खाद्यान्न फसलों की जगह नकदी फसलों पर ध्यान (निर्यात बाजार के लिए) जिससे खाद्यान्नों की कीमतों में वृद्धि हुई।
3.औद्योगिक मांग एवं संवृद्धि दर में कमी
औद्योगिक संवृद्धि दर में कमी
औद्योगिक उत्पादों की मांग में कमी
सस्ता आयात, बुनियादी ढांचे में अपर्याप्त निवेश;
सस्ता आयात घरेलू सामान की मांग की जगह ले ली है;
बुनियादी ढांचा और बिजली आपूर्ति कम बनी हुई है
उच्च गैर-टैरिफ बाधाओं के कारण विकसित देशों के बाजार तक पहुंच की कमी
सस्ते आयात और कम निवेश के कारण विकास धीमा हो गया है
4.विनिवेश नीति लाभदायक नहीं
प्रतिवर्ष सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों में से विनिवेश के कुछ लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं
1990-91 विनिवेश द्वारा 25,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य ।
वास्तविक प्राप्तियां ₹ 3040 करोड़ रुपये अधिक
2017-18 में लक्ष्य लगभग 1 लाख करोड़ रुपये
वास्तविक प्राप्तियां ₹ 1 लाख 57 करोड़
• उपरोक्त राशि का प्रयोग राजस्व घाटे को कम करने के लिए किया गया , PSE के विकास के लिए इसका उपयोग नही किया , सामाजिक आधारिक संरचना के निर्माण पर भी खर्च नहीं किया गया ।
5.राजकोषीय नीति के प्रतिकूल प्रभाव
• सुधार अवधि में करो में कमी (जैसे सीमा शुल्क में कमी) के कारण सरकार के लिए कर राजस्व में वृद्धि नहीं हुई है
• विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कर प्रोत्साहन दिए
सिरीसिला त्रासदी
• बिजली के मजदूरों की मजदूरी को कपड़ा उत्पादन से जोड़ा जाता है, बिजली कटौती का मतलब बुनकरों के वेतन में कटौती होता था जो टैरिफ में वृद्धि से पीड़ित हैं । इससे उनकी आजीविका पर संकट पड़ा।
• आंध्र प्रदेश के कस्बे सिरीसिला में 50 श्रमिकों ने आत्महत्या कर ली
महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष
• वैश्विक बाजारों में अधिक से अधिक पहुंच के रूप में वैश्वीकरण, उच्च प्रौद्योगिकी और बड़े उद्योगों की उच्च संभावना
• अन्य देशों के लिए बाजार का विस्तार करने की रणनीति
• बाजार आधारित वैश्वीकरण ने राष्ट्रों और लोगों के बीच आर्थिक असमानताओं को चौड़ा किया है
• केवल उच्च आय समूहों की आय और खपत में वृद्धि हुई
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