• गठन : 22 नवंबर 2017
• अध्यक्ष : डॉ एन के सिंह (पूर्व संसद सदस्य एवं भारत सरकार के पूर्व सचिव)
• सदस्य : Members
1. श्री अजय नारायण झा (वित्तीय क्षेत्र), पहले शक्तिकान्त दास थे लेकिन दिसंबर 2018 में उनके भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बनने के बाद श्री अजय नारायण झा इसके सदस्य बने हैं।
2. डॉ अशोक लाहिरी (अर्थशास्त्र विशेषज्ञ),
3. डॉ अनूप सिंह
4. प्रो. रमेश चंद्र (नीति आयोग के सदस्य)
सचिव : अरविंद मेहता
• कार्यकाल : 5 वर्ष 2020-25 (1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2026)
• इस आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट 1 फरवरी 2020 को प्रस्तुत की है जिसमें वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए सिफारिश की है । फाइनल रिपोर्ट 30 अक्टूबर 2020 तक सौंपी जाने की संभावना है।
अंतरिम रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें
1. केंद्र के करो में राज्यों का हिस्सा
• 42% से कम करके 2020-21 के लिए 41% करना।
• यह कमी नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख को केंद्र सरकार द्वारा धनराशि देने के लिए की गई हैं।
सुरक्षा तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
• वित्तीय वर्ष 2018-19 में राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा प्राप्त कुल राजस्व देश की GDP का लगभग 17.5% था । आयोग का विचार है कि देश का वास्तविक कर राजस्व, अनुमानित कर राजस्व से कम है। 1990 के दशक की शुरुआत से अब तक भारत की कर क्षमता काफी हद तक अपरिवर्तित रही हैं ।
इसके संदर्भ में आयोग ने तीन प्रमुख सिफारिशें दी हैं
a) कर आधार को व्यापक बनाना
b) कर की दरों को सरल बनाना
c) सरकार के सभी स्तरों पर कर प्रशासन की क्षमता और विशेषज्ञता को बढ़ाना।
2. राज्यों के मध्य राजस्व का विभाजन (क्षेत्रीय विभाजन)
वित्त आयोग ने वर्ष 2011 के जनसंख्या के साथ वनावरण, कर प्रयासों, तथा जनसांख्यिकीय प्रदर्शन को आधार मानते हुए राज्यों की हिस्सेदारी निर्धारित की हैं । राज्यों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों के प्रोत्साहन के लिए आयोग ने एक मानदंड विकसित किया है जो 1971 में राज्य की आबादी और वर्ष 2011 की प्रजनन दर के अनुपात में निर्धारित की गई हैं। इसके लिए अधिभार तय किया गया है :
• आय विस्थापन (असमानता) : 45%
• जनसंख्या (2011) : 15%
• राज्य का क्षेत्रफल. : 15%
• जनसांख्यिकीय प्रदर्शन : 12.5%
• राज्य में वनों का क्षेत्रफल. : 10%
• कर प्रयास : 2.5%
3. संचित निधि (Consolidated Fund) में से राज्यों को अनुदान
• राजस्व घाटा अनुदान : 14 राज्यों को देने की सिफारिश की है।
• विशेष अनुदान : कर्नाटक, मिजोरम, तेलंगाना को ₹ 6764 करोड
• क्षेत्र विशेष के लिए अनुदान : ₹ 7375 करोड़
पोषण, स्वास्थ्य, पूर्व प्राथमिक शिक्षा, न्याय, रेलवे, पुलिस प्रशिक्षण, आवास, ग्रामीण कनेक्टिविटी आदि के लिए ।
• आपदा जोखिम अनुदान
राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा प्रबंधन कोष के गठन का सुझाव
राज्य आपदा कोष के लिए ₹ 28,983 करोड़
राष्ट्रीय आपदा कोष के लिए ₹ 12390 करोड़
• प्रदर्शन आधारित अनुदान
कृषि सुधार लागू करना, बिजली क्षेत्र में सुधार, निर्यात सहित व्यापार बढ़ाना, घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय पर्यटन के लिए संवर्द्धन आदि
• रक्षा क्षेत्र हेतु नॉन लेप्सेबल फंड की स्थापना
4.स्थानीय निकायों को अनुदान
90 हजार करोड रुपए देने की सिफारिश की है जो की अनुमानित विभाजन योग्य राजस्व का 4.31% है।
ग्रामीण निकायों को 60,750 करोड़ (67.5%)
शहरी निकायों को 29,250 करोड़ (32.5%)
जनसंख्या के रूप में मापदंड का विरोध
दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या मापदंड की आलोचना की है 14 वित्त आयोग ने राज्यों के हिस्से की गणना के लिए वर्ष 1971 और 2011 के जनसंख्या आंकड़ों का उपयोग किया था और 2011 की अपेक्षा 1971 के आंकड़ों को अधिक महत्व दिया था।
15 वे वित्त आयोग ने सिर्फ वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों का प्रयोग किया है आयोग ने तर्क दिया है कि मौजूदा राजकोषीय समीकरण को देखते हुए यह आवश्यक था कि नवीन जनगणना आंकड़ों का प्रयोग किया जाए।
दक्षिणी राज्यों का मानना है कि वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों के उपयोग से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़ी आबादी वाले राज्यों को ज्यादा हिस्सा मिल जाएगा जबकि कम प्रजनन दर वाले छोटे राज्यों के हिस्से में काफी कम राजस्व आएगा। हिंदी भाषी उत्तरी राज्यों (बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड) की कुल जनसंख्या 47.8 करोड़ है जो कि देश की कुल आबादी का 39.48% है। इस क्षेत्र के करदाताओं की कर राजस्व में मात्र 13.89 % योगदान है जबकि कुल राजस्व में 45.17 % हिस्सा दिया जा रहा है । दूसरी ओर आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को कम आबादी के कारण कुल राजस्व में काफी कम हिस्सा मिलता है जबकि देश की प्राप्तियों में उनका योगदान अधिक रहता है।
धन्यवाद।
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