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एडम स्मिथ का आर्थिक विकास सिद्धांत , आर्थिक विकास का प्रतिष्ठित सिद्धांत



एडम स्मिथ का आर्थिक विकास सिद्धांत 
 Adam Smith’s Theory of Economic Development
• Book : An Enquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations  (1776 ) 
• मुख्यतः आर्थिक विकास की समस्याओं पर आधारित 
• आर्थिक विकास हेतु उत्तरदायी घटकों को निर्धारित करने का प्रयास किया 
• साथ ही उन नीतिगत उपायों को भी सामने रखा जिनमें तीव्र वृद्धि के लिए वातावरण बनाया जाना संभव होता 
• आंतरिक रूप से संगत प्रावैगिक मॉडल Dynamic Model प्रस्तुत किया ।

मान्यताएं : Assumptions
• भूमि की पूर्ति स्थिर : supply of land cannot be increased
• श्रम की असीमित पूर्ति : unlimited supply of labour
• श्रम की उत्पादकता में वृद्धि श्रम विभाजन एवं पूंजी संचय द्वारा 
• बाजार अर्थव्यवस्था पूर्ण प्रतियोगिता : market economy with perfect competition
• निवेश अंतर्जात (Endogenous) तत्व : बचत से निर्धारित 
• संसाधनों का आवंटन अबंध नीति ( Laissez faire) एवं अदृश्य हाथ (invisible hand) द्वारा


एडम स्मिथ के सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएं
1. प्राकृतिक नियमों की सार्वभौमिकता (Natural Law) 
 प्रकृति द्वारा बनाए नियमों के पालन से न्याय एवं आर्थिक विकास की प्राप्ति होती है तथा व्यक्ति के हित भी सुरक्षित रहते है । यदि ऐसा नहीं होता तो आर्थिक विकास में बाधाओं का अनुभव होगा । एडम स्मिथ ने विकास का मूल स्रोत मनुष्य की प्रेरणा शक्ति बतलाया ।
आर्थिक विकास का क्रम (विकास के एजेंट) : Process of Development
 विकास के प्राकृतिक रूप में पहले कृषि, फिर उद्योग एवं अन्त में वाणिज्य का विकास होता है ।
आर्थिक प्रगति के Agent  कृषक, उत्पादक एवं व्यवसायी है ।
स्वतन्त्र उपक्रम अर्थव्यवस्था स्वतन्त्र व्यापार एवं प्रतिस्पर्धा कृषक, उत्पादकों एवं व्यवसायियों को बाजार का विस्तार करने में मदद करती है जिससे आर्थिक विकास संभव होता है । ये तीनों अन्तर संबंधित हैं । कृषि के विकास से विनिर्माण क्रियाएं बढ़ती हैं तथा वाणिज्य का विस्तार होता है ।
आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप जब कृषि अतिरेक बढ़ता है तब वाणिज्यिक सेवाओं एवं विनिर्माण वस्तुओं की माँग बढ़ती है । इससे वाणिज्यिक प्रगति होती है तथा विनिर्माण उद्योग स्थापित होता है । इसके विकास से कृषि उत्पादन में भी वृद्धि होती है क्योंकि कृषक उन्नत तकनीकों का प्रयोग करने लगते है । इस प्रकार कृषक उत्पादक एवं व्यवसायियों के कारण पूंजी संचय व आर्थिक विकास होता है ।

2. उत्पादन फलन Production Function
                                      Y = f (K, L, N)
उत्पादन के तीन घटकों पूँजी के स्टॉक (K) श्रमशक्ति (L) एवं भूमि (N)  महत्वपूर्ण 
भूमि से अभिप्राय ज्ञात एवं आर्थिक रूप से उपयोगी साधनों की पूर्ति से था ।
श्रम :  देश के वार्षिक उपभोग हेतु विविध वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करता है ।
पूंजी : पूँजी मितव्ययिता से बढ़ती है तथा फिजूलखर्ची एवं बुरे आचरण से घटती है ।
उनका उत्पादन फलन पैमाने के बढ़ते प्रतिफल  से सम्बन्धित रहा ।
स्मिथ के अनुसार समय के साथ-साथ बाजार के आकार में वृद्धि होती है तथा आन्तरिक व वाह्य मितव्ययिताएँ प्राप्त होती हैं । इससे उत्पादन की वास्तविक लागत कम होती है ।

3. उत्पादन की तकनीक Techniques of Production
                श्रम विभाजन Division of Labour
• उत्पादन में वृद्धि श्रम विभाजन द्वारा 
• श्रम विभाजन से श्रम की उत्पादक शक्तियों में सुधार होता है तथा निम्न तीन लाभ होते हैं -
(i) प्रत्येक श्रमिक की कार्य क्षमता में वृद्धि 
(ii) वस्तुओं के उत्पादन में लगे समय में कमी
(iii) अच्छी मशीनों एवं उपकरणों आविष्कार । 
उत्पादन तकनीक में सुधार के साथ-साथ बढ़ता हुआ श्रम विभाजन उत्पादन में पैमाने की मितव्ययिताओं को संभव बनाता है ।
 श्रम विभाजन तभी लाभप्रद होगा जब उत्पादित होने वाली वस्तुओं के लिए समुचित बाजार हो ।
बाजार का आकार मुख्यतः उपलब्ध पूंजी स्टॉक तथा घरेलू एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में लगाए गए संस्थागत संरक्षण पर निर्भर करता है । 

4. पूंजी संचय की प्रक्रिया : Process of Capital Accumulation
• विकास की प्रक्रिया में बचत (Saving) एवं पूंजी संचय (Capital Accumulation) आवश्यक 
• आर्थिक विकास की समस्या को देश में व्यक्तियों की बचत व विनियोग की कुशलता के द्वारा अभिव्यक्त किया ।
विनियोग की दर का निर्धारण  बचत के द्वारा होता है तथा बचतों का पूर्ण विनियोग किया जाता है समस्त बचतें पूंजीगत विनियोगों या भूमि से प्राप्त लगान के द्वारा प्राप्त होती है । अतः पूंजीपति एवं भूमिपति बचत करते हैं। श्रमिक वर्ग बचत करने में अक्षम होते है (मजदूरी के लौह नियम)
स्थैतिक दशाओं में मजदूरी दर जीवन निर्वाह स्तर के बराबर गिरती है, जबकि तीव्र पूंजी संचय की अवधि में मजदूरी जीवन निर्वाह स्तर से ऊपर बढ़ती है ।
मजदूरी का स्तर  पूँजी संचय की दर एवं जनसंख्या वृद्धि की दर पर निर्भर करता है । यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वृद्धि फलनात्मक रूप से विनियोग की दर पर निर्भर करती है ।
एक स्थिर पूंजी स्टॉक की दशा में देश गतिरोध का अनुभव करता है । यदि पूंजी स्टॉक में वृद्धि होती है तो देश के उत्पादन में श्रम विभाजन के बढ़ने से अधिक आनुपातिक वृद्धि होती है । विपरीत संस्थागत परिवर्तन पूंजी संचय के लाभों में कमी करते है ।

5. विनियोग का कारण – लाभ (Investment for Profit)
पूंजीपति विनियोग के द्वारा लाभ कमाना चाहते है । भविष्य में लाभ की आशा वर्तमान समय में विनियोग के वातावरण तथा प्राप्त हो रहे वास्तविक लाभ पर निर्भर करती है ।
एडम स्मिथ के अनुसार आर्थिक प्रगति के साथ-साथ लाभ कम होने लगते हैं । पूंजी स्टॉक बढ़ने पर श्रम की अधिक माँग होती है जिसमें मजदूरी दर बढ़ती है तथा पूंजीपति के लिए न्यून अतिरेक शेष रह जाता है ।
आर्थिक विकास में ब्याज की दर की भूमिका को स्पष्ट करते हुए स्मिथ ने स्पष्ट किया कि समृद्धि (प्रगति) एवं जनसंख्या में वृद्धि होने पर ब्याज की दरें गिरती हैं जिससे पूंजी की पूर्ति बढ़ती है । इस प्रकार लगान के बारे में स्मिथ का विचार था कि आर्थिक प्रगति होने पर मुद्रा में वृद्धि होने के साथ-साथ लगान तथा राष्ट्रीय आय में लगान के अंश में वृद्धि होती है ।

6. विकास की प्रक्रिया संचयी होती है Cumulative process of development
विकास की प्रक्रिया प्रारंभ होने पर स्वयं गति प्राप्त करती है तथा संचयी होती है । श्रम विभाजन पूँजी के संचय द्वारा संभव बनता है तथा बाजार का विस्तार होने पर राष्ट्रीय आय एवं उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे बचत विनियोग बढ़ता है , पूँजी का स्टॉक बढ़ता है । इससे पूँजी संचय की वृद्धि प्रोत्साहित होती है ।  अर्थव्यवस्था की प्रगति का दूसरा महत्वपूर्ण घटक वृद्धि मान पूँजी के उत्पाद अनुपात में लगातार कमी होना है । इसका कारण यह है कि पूंजी के बढ़ते हुए प्रयोग से श्रम की उत्पादकता पर धनात्मक प्रभाव पड़ता है ।
संस्थागत, राजनीतिक एवं प्राकृतिक घटकों को ध्यान में रखते हुए एडम स्मिथ ने माना कि एक सामाजिक वर्ग ऐसा है जिसे राष्ट्र कहा जाता है तथा जो आर्थिक वृद्धि की एक निश्चित दर का अनुभव करता है । इसके परिणामस्वरूप बाजार का विस्तार होता है जिसे श्रम विभाजन बढ़ता है एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है । स्मिथ के सिद्धान्त के अनुसार- अर्थव्यवस्था एक वृक्ष की भाँति बढ़ती है ।



7. स्थिर अर्थव्यवस्था Stationary State
एडम स्मिथ के अनुसार- आर्थिक विकास की प्रक्रिया हमेशा वृद्धिमुखी प्रवृति नहीं रखती बल्कि एक समय बाद यह स्थिर अर्थव्यवस्था बन जाती हैं। 
• कुल आय में स्थिरता दिखायी देती है  
• जीवन निर्वाह मजदूरी प्राप्त होती है । 
• लाभ कम होने लगते है । 
• शुद्ध विनियोग की कमी होती है तथा 
• जनसंख्या अपरिवर्तित रहती है । 
प्राकृतिक संसाधनों की सीमितता वृद्धि को अंतिम रूप से सीमित कर देती है ।
एडम स्मिथ ने स्थिर अवस्था को दूर करने के उपाय नहीं बताएं । एडम स्मिथ का स्थिर अवस्था का विचार अर्द्ध विकास से भिन्न है । उनके अनुसार- स्थिर अवस्था में अर्थव्यवस्था अपने आपको समृद्धि के उच्चतम स्तर पर पाती है जो उसके प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण से संगति रखती है, जबकि एक अर्द्ध विकसित अर्थव्यवस्था अपने संसाधनों द्वारा प्राप्त होने वाले समृद्धि के उच्चतम अंश से पूर्व ही गतिरोध की अवस्था में पहुँच जाती है ।



एडम स्मिथ के विश्लेषण का मूल्यांकन 
Critical Evaluation of the Analysis of Adam Smith
एडम स्मिथ का विश्लेषण स्पष्ट करता है कि आर्थिक वृद्धि कैसे होती है एवं कौन-से घटक एवं नीतियाँ इसे प्रेरित करते है । उन्होंने बचत एवं पूंजी संचय सुधरी तकनीक, श्रम विभाजन, उत्पादन बाजार के विस्तार एवं कृषक व्यापारियों एवं उत्पादकों की अंतर निर्भरता के आधार पर संतुलित वृद्धि की प्रक्रिया को सामने रखा ।
एडम स्मिथ द्वारा वर्णित स्थिर अवस्था अबंध नीति एवं विकास को सतत् व संचयी प्रक्रिया मानने के विचार को कालांतर में अन्य अर्थशास्त्रियों द्वारा विश्लेषित किया गया।



















धन्यवाद।

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