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सीमांत उपयोगिता हास नियम हा्समान सीमांत उपयोगिता नियम

सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम
Law of diminishing Marginal Utility


उपयोगिता ह्रास नियम उपभोग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नियम है। इस नियम का प्रतिपादन फ्रेंच अर्थशास्त्री गोसेन ने 1854 किया था अतः इसे ‘गोसेन का प्रथम नियम’ भी कहा जाता है।
 बाद में इसकी आधुनिक, विस्तृत एवं वैज्ञानिक व्याख्या प्रोफ़ेसर अल्फ्रेड मार्शल द्वारा की गई हैं।
इसे उपभोग का सार्वभौमिक नियम भी कहा जाता है।

नियम का कथन : प्रोo मार्शल ने इसको इस प्रकार परिभाषित किया है-

"किसी मनुष्य के पास किसी वस्तु के स्टॉक की मात्रा में वृद्धि होने से जो अतिरिक्त लाभ उसको प्राप्त होता है, तो अन्य बातें समान रहने पर वह वस्तु के स्टॉक की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के साथ-साथ घटता जाता है।"

दूसरे कथन के अनुसार, “ जब कोई उपभोक्ता अन्य वस्तुओं के उपभोग को स्थिर रखते हुए किसी वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है तो परिवर्तनशील वस्तु की सीमान्त उपयोगिता अंत मे अवश्य घटती है।


नियम की व्याख्या अथवा स्पष्टीकरण : Explanation


एक दिन में आम के
 उपभोग की मात्रा (Q)     सीमांत उपयोगिता        कुल उपयोगिता
                                   Marginal Utility        Total Utility
         1                               40                            40
         2                               30                            70
         3                               20                            90
         4                               10                          100
         5                                0                            100
         6                              -10                             90

उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि आम के उपयोग से उपभोक्ता को मिलने वाली उपयोगिता पांचवीं इकाई तक निरंतर बढ़ती हैं किंतु यह वृद्धि घटती हुई दर से हैं एक विशिष्ट समय में पांचवीं इकाई से अधिक उपभोग करने पर आम से प्राप्त कुल उपयोगिता घटने लगती हैं जिससे सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती हैं किसी एक समय में आम के अत्यधिक उपभोग से पेट में गड़बड़ी उत्पन्न हो सकती हैं जिससे सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती हैं।


सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यताएं :Assumptions

(1)वस्तु का उपभोग उपयुक्त इकाइयों में किया जाना चाहिए 
(2) वस्तु की सभी इकाइयां गुण तथा मात्रा में समान होनी चाहिए 
(3)वस्तु की इकाइयों का उपभोग लगातार हो
(4) वस्तु के कीमतों में कोई परिवर्तन नही होना चाहिए।
(5) उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नही होना चाहिये 
(6) उपभोक्ता विवेकशील होना चाहिए।
(7) उपभोक्ता की रुचि ,आदत, फैशन आदि स्थिर रहें


सीमांत उपयोगिता हास नियम की क्रियाशीलता के कारण अथवा लागू होने के कारण
प्रोफ़ेसर बोल्डिंग ने इस नियम के लागू होने के दो कारण बताएं हैं
(1) वस्तुएं एक दूसरे की अपूर्ण स्थानापन्न होती हैं 
(2) किसी आवश्यकता विशेष की संतुष्टि संभव होती हैं।

नियम के अपवाद : Exception
अवास्तविक (दिखावटी) अपवाद         वास्तविक अपवाद          
• सूक्ष्म इकाई।                            मधुर संगीत /कविता सुनना
• मादक पदार्थ                            प्रारंभिक अवस्था
• दुर्लभ वस्तुएं 
• प्रदर्शन प्रभाव


सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का महत्त्व : Importance

(1) वस्तु की कीमत निर्धारण में उपयोगी
    जल हीरा विरोधाभास का समाधान : जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है अतः उसकी सीमांत उपयोगिता काम है जिससे उसकी कीमत भी कम है जबकि हीरा दुर्लभ हैं और उसकी सापेक्षिक उपयोगिता अधिक होने से उसकी कीमत भी ऊंची होती है।
(2) मांग के नियम का आधार :
 यह नियम 'माँग के नियम' की व्याख्या करता है, अर्थात इस बात को स्पष्ट करता है कि कि मांग रेखा दायें को गिरती हुई क्यों होती है । यदि उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिक इकाइयों का प्रयोग करता है तो उसके लिए वस्तु की उपयोगिता कम होती जाती है, इसलिए 
वह वस्तु की अधिक मात्रा प्रयोग करने के लिए कम कीमत देना चाहेगा। दूसरे शब्दों में वस्तु की कम कीमत होने पर उसकी अधिक मात्रा का प्रयोग करेगा। यही बात माँग का नियम बताता है।

(3) राजस्व अथवा राजकोषीय नीति में महत्वपूर्ण
आधुनिक कर प्रणाली तथा आय के पुनर्वितरण का आधार है । अधिक धन होने के कारण अमीर व्यक्ति के लिए मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता गरीबों की अपेक्षा कम होती है। इसलिए सरकार अमीरों पर अधिक कर लगाती है और गरीबों पर कम।

(4)सम-सीमान्त उपयोगिता नियम का आधार
प्रत्येक व्यक्ति अपने सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपभोक्ता सबसे 
पहले उस वस्तु पर अपनी सीमित आय को व्यय करता है जो उसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। परन्तु जब वह इसी वस्तु पर अपना 
धन व्यय करता जाता है तो उपयोगिता हास नियम के कारण उसकी उपयोगिता गिरती जाती है और उपभोक्ता को अनुभव
होता है कि अब उसकी यह आवश्यकता अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं रह गयी है बल्कि दूसरी आवश्यकता अधिक महत्वपूर्ण है। यह 
अनुभव होते ही वह मुद्रा को पहले कम लाभदायक प्रयोग से दूसरे अधिक लाभदायक प्रयोग मे उपयोग कर लेता है।

(5) उपभोक्ता की बचत के सिद्धांत का आधार
उपभोक्ता किसी वस्तु का प्रयोग या उपभोग करने के लिए जब पहली इकाई खरीदता है तो उसके लिए दी जाने वाली कीमत की अपेक्षा उसे अधिक उपयोगिता प्राप्त होती है। परन्तु जैसे-जैसे वह वस्तु की अधिक इकाइयों को खरीदता जाता है तो बाद वाली इकाइयों की उपयोगिता, उपयोगिता ह्रास नियम के अनुसार, घटती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जहाँ पर कि वस्तु की सीमान्त इकाई की उपयोगिता ठीक कीमत के बराबर हो जाती है। 

(5)यह नियम विनिमय मूल्य तथा उपयोग मूल्य के अन्तर को बताता है
जैसे किसी वस्तु की पूर्ति (जैसे—पानी, हवा, सूर्य की रोशनी) जितनी अधिक हो उतनी ही उसकी सीमान्त उपयोगिता कम होगी और इसलिए उसका 'विनिमय मूल्य' (कीमत) कम होगी।

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